अहंकार है अस्तित्व से स्वयं को अलग मानकर जीना। मैं हूं सत्य और यह जो प्रकृति में सब दिखाई दे रहा है वह सब माया है। यह झरने, पशु पक्षी आकाश ,चांद -तारे यह सब माया है मगर मैं सत्य हूं।
मगर मजा यह है कि यह सब सत्य है और मैं माया हूं। लेकिन मैं को माया कहने से हमारे प्राण छटपटाते हैं। हालांकि इस मैं के कारण ही हम दुखी हैं। सारा उपद्रव जो जीवन में है वह इस मैं की देन है। मगर हम हैं जो यह मानने को राजी नहीं कि मैं माया है, मैं दुख का स्त्रोत है ,मैं सारे उपद्रव की जननी है।
आपने कभी अनुभव किया है कि मैं भाव ने आपकी कितना दुख दिया है । मैंने सुना है कि दो मित्र आपस में बात कर रहे थे । दोनों जिगरी दोस्त थे। उनकी पहचान उनकी पक्की दोस्ती थी । दोनों के परिवारों में भी आपस में गहरा मेलजोल था । मित्रता ऐसी कि लोग उनकी मित्रता के उदाहरण प्रस्तुत करते थे । मगर एक बार किसी बात पर एक मित्र ने दूसरे का अपमान कर दिया । दूसरे मित्र के मैं भाव को ठेस पहुंची और फिर क्या था दोस्ती में ऐसी खटास आई कि फिर वह बात ही ना रही । अपमान ही तो किया था एक मित्र ने । अपनी जबान चलाई उसकी जबान ही तो फिसली थी । मगर मैं भाव को ठेस पहुंची और सारा खेल बिगड़ गया । ध्यान रहे अपमान दुख नहीं देता । मेरा अपमान हुआ या मैं अपमानित हुआ यह भावना दुख देती है ।
क्या आपने देखा है कि भिखारी वही भीख मांगता है जहां पर कुछ ऐसे लोग हैं जिनकी जेब गर्म हो । क्योंकि उसे पता है कि यदि उसने ऐसी जगह हाथ फैलाए तो कुछ ना कुछ जरूर मिलेगा । आखिर अहंकार का मामला जो है । कुछ ना दिया तो मैं भाव को ठेस पहुंचेगी । लोग क्या कहेंगे इतना बड़ा सेठ और भिखारी को खाली हाथ भेज दिया । अहंकार बहुत सूक्ष्म रास्ते इज्जत करता है । कभी प्रतिष्ठित होना चाहता है । कभी ऊंचे ऊंचे पद हासिल करने की दौड़ में स्वयं को सम्मिलित कर देता है । कारण है मैं को पुष्ट और पुष्ट जो करना है तभी तो समाज में इज्जत होगी, तभी तो लोग मुझे पहचानेंगे ।
मगर यह अद्भुत सत्य है कि इसी अहंकार के कारण व्यक्ति दुखी है । मछली जैसे पानी से बाहर निकाल दी जाए तो तड़फड़ाती है । उसे जीवन तो तभी मिलेगा उसे जब पानी ने दोबारा डाल दिया जाए । व्यक्ति भी अपने अहंकार के कारण परमात्मा से अपने आप को तोड़े हुए हैं।अस्तित्व से अपने आप को तोड़े हुए हैं । अपने स्वभाव से तोड़े हुए हैं । अपने धर्म से तोड़े हुए हैं ।
और एक बात । अहंकार स्वयं को पुष्ट करने के लिए नित्त नए नए उपाय खोजता है । ना सिर्फ संसारी का अहंकार है मगर त्यागी का भी अहंकार है । त्यागी को अहंकार है त्याग का । की उसने छोड़ दिया । धन को लात मार दी ।विनम्र व्यक्ति का भी अपना अहंकार है । वह कहता फिरता है कि मैं तो प्रभु के चरणों की धूल हूं । मगर यह भी सूक्ष्म अहंकार है । अहंकार है मूल कारण हमारे सारी तन ,मन की पीड़ा का । 90% से अधिक जो हमारी साइकोसोमेटिक बीमारियां हैं उसका मूल है यह अहंकार ।
क्या है अहंकार से मुक्ति का उपाय । एक ही रास्ता है वह है ध्यान । जाग कर देखना । होश को जगाना । ध्यान अहंकार को गला देता है । होश बता देगा कि अहंकार झूठ है और जिस दिन आपने जाना अहंकार झूठ है उसी दिन अपने जाना मैं नहीं हूं परमात्मा है । उसी दिन आनंद के द्वार खुल जाते हैं । उसी दिन आपके जीवन में अनंत संभावनाओं की वर्षा हो जाती है ।आप समृद्धि से भरे आनंदमय जीवन को जीने लगते हैं ।
‘Sakshi’Narendra @mysticvision.net