परमात्मा की तरफ जाने का प्रथम कदम है पूर्णतः शांत होने की अवस्था में आ जाना। जब मन अकम्प हो जाता है तब जो अनुभव है वही है परमात्मा। हमारा चित् इसलिए शांत नहीं होता क्योंकि चित् में कुछ पाने की, कुछ करने की वासनाएं उमड़ती रहती है। जब तक चित् वासनाओं तो से मुक्त नहीं होता तब तक चित् कभी भी शांत नहीं हो सकता। आप जो जीवन में पाना चाहते हैं आप जो होना चाहते हैं वह आप हैं। मगर क्योंकि हम हमारे ‘होने’ से कटे हुए हैं इसीलिए उसका हमें अनुभव नहीं होता। धर्म बनने का रास्ता नहीं, मिटने का रास्ता है। स्वयं के मिटते ही परमात्मा का अनुभव होता है। और अनुभव होते ही आप जो पाना चाहते हैं वह स्वतः होने लगता है। आदमी ने अपने चित् की कंडीशनिंग कर रखी है। गलत मान्यताओं, वृतियों और संस्कारों से मुक्त हो जाना ही स्वयं के अनुभव की स्थिति है। बूंद अगर अपने को खो दें तो सागर हो जाती है। आदमी भी स्वयं को Undone कर दे तो परमात्मा हो जाता है। अस्तित्व की विराट चेतना से एक हो जाता है। जीवन में वास्तविक सफलता हमें इसलिए नहीं मिलती क्योंकि हम संग्रहित किए हुए ज्ञान से भरे हुए हैं। यह borrowed ज्ञान व्यक्ति को अहंकारी बनाता है। उसको लगता है मैं सब जानता हूं। चित् में अगर आपके Knowing एटीट्यूड होगा तो आप स्वीकार भाव में नहीं होंगे। इस कारण जो रुपांतरण आप चाहते हैं वो संभव नहीं। धर्म की शिक्षा कभी नहीं हो सकती, धर्म की साधना हो सकती है। धर्म की साधना के लिए आप जो कुछ भी जानते हैं उस से मुक्त होना जरूरी है। और यही साधना है। परमात्मा अज्ञात है अगर आप को अज्ञात को जानना है तो जो हम जानते हैं उससे हमें मुक्त होना पड़ेगा। जो शास्त्रों को पकड़ कर बैठते हैं वह कभी भी आनंद तक नहीं पहुंच सकते। सत्य को जानने का एकमात्र मार्ग है ध्यान। आप जो जानते हैं उस से मुक्त होने का एकमात्र मार्ग है ध्यान। ध्यान है आनंद प्राप्ति का रास्ता और समाधि है मंजिल।
‘Sakshi’Narendra @mysticvision.net