एक गांव था जिसमें पंचायत बैठा करती थी। एक बार गांव के कुएं में तीन कुत्ते गिर जाते हैं। जिस कारण कुए का पानी पीने लायक नहीं रहता। गांव वालों ने पंचायत में मांग की कि कुएं के पानी को साफ किया जाए और उसे पीने लायक बनाया जाए। मगर किसी के पास कोई उपाय नहीं था। उस गांव में एक संत का आना हुआ। गांव के कुछ लोगों ने उस संत फकीर से कहा कि हमारे कुएं में तीन कुत्ते गिर गए हैं और कुए का पानी बदबू मार रहा है। पीने लायक नहीं रहा। कोई उपाय कीजिए। संत बड़ा सज्जन व्यक्ति था। वह क्या करता उसने कहा जाओ इत्र की कुछ बूंदे डाल दो। गांव वालों ने ऐसे ही किया। उस कुएं में सुगंधित द्रव्य डाल दिया। उसके बावजूद भी पानी से बदबू न गई। फिर वह लोग संत के पास गए कहा कि तुम्हारे उपाय से कोई फायदा नहीं हुआ। संत ने कहा जाओ कुछ गंगाजल डाल दो। गांव वालों ने कुछ बाल्टियां कुएं में उड़ेल दी। उसके बावजूद भी बदबू कम न हुई। फिर शिकायत ले गांव वाले उस संत के पास गए कहा तुम्हारा यह उपाय भी कोई काम का नहीं रहा। संत ने कहा जाओ राम कथा करवा लो। और गांव वालों ने ऐसा ही किया। मगर उसके बावजूद भी कुएं के पानी से बदबू खत्म न हुई। फिर अंतिम बार वह संत के पास गए। कहा तुम्हारे उपायों से कोई फायदा नहीं हो रहा है। संत थोड़ा ठहरे, आंखें बंद की और पूछा कि मुझे यह बताओ कि क्या तुमने मरे हुए कुत्तों को पानी के अंदर से निकाला या नहीं। गांव वालों ने जवाब दिया ऐसा तो हमने नहीं किया। संत बोले कि ऐसा ही हम हमारे जीवन में करते हैं। हम यात्रा करते हैं, पुण्य करते हैं, पूजा पाठ करते हैं मगर मन के मैल को कभी नहीं धोते। हमारा मन तो क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, कामवासना और अहंकार से भरा हुआ है। और हम पाना चाहते हैं आनंद को, पाना चाहते हैं प्रेम, शांति को। क्या यह संभव है ? जब तक मन में कपट है, ईर्ष्या है, दूसरों के प्रति द्वेष भाव है तब तक चित् शांत कैसे हो सकता है ?
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net