व्यक्ति विकास की यात्रा चार चरणों में से होकर गुजरती है। पहला चरण है- नकारात्मकता, दूसरा चरण है- सकारात्मकत, तीसरा है- नकारात्मकता और सकारात्मकता के बीच संतुलन कायम करना और चौथा है- तीनों चरणों से मुक्ति अर्थात साक्षी भाव में स्थित हो जाना। जिसको अध्यात्म के ऋषियों ने मोक्ष, निर्वाण या बुद्धत्व कहा है। अक्सर हमारे भीतर मस्तिष्क में यह विचार कौंधता है कि ईश्वर ने सारे अच्छे इंसानों को ही क्यों नहीं बनाया ? क्यों इस संसार में बुराई को ही स्थान दिया ? क्यों सब जगह फूल ही फूल नहीं ?कांटो की क्या आवश्यकता थी ? क्यों जीवन में सभी को सुख नहीं दिया ? क्या मनुष्य को दुखी करने में ईश्वर का कोई औचित्य रहा होगा ? क्यों ईश्वर ने सभी को अमीर नहीं बनाया ? गरीबी से त्रस्त लोगों की क्या ईश्वर ने वास्तविक कल्पना की होगी ? इस तरह के कई विचार हम सब के मस्तिष्क में बार-बार आते रहते हैं। मगर यहां हम यह भूल जाते हैं कि जैसे परमाणु के 3 घटक होते हैं इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन। उसी तरह प्रकृति के भी 3 गुण है रजस, तमस और सत्व। रजस की उपस्थिति तमस के बिना नहीं हो सकती। नेगेटिव के बिना पॉजिटिव हो नहीं सकता। तमस है इनर्शिया जो स्थिरता का तत्व है जबकि रजत गति का प्रतीक है। सफेद चौंक से तो काले ब्लैक बोर्ड पर ही लिखा जाएगा। तभी अक्षर स्पष्ट दिखाई देंगे। अगर किसी फिल्म में विलियन हो ही नहीं तो क्या Hero आपको वास्तव में हीरो प्रतीत होगा ? अगर जीवन में दुख न हो तो ऐसा सुख दो कौड़ी का होगा। अगर आपके जीवन में कठिनाइयां हो ही नहीं तो सफलता का आनंद उतना प्रीतिकर नहीं होगा जो कठिनाइयों से गुजर कर आपने प्राप्त किया हो। ओलंपिक के स्वर्ण पदक की क्या कीमत अगर आपने उसमें हिस्सा लेकर पोडियम पर खड़े हो उसे हासिल ही न किया हो। कीमत पदक की नहीं मगर उसके पीछे जो आपने अनगिनत प्रयत्न, मेहनत और कठिनाइयां सही उसका फल है ये स्वर्ण पदक। यह कहना ईश्वर की प्रकृति में सब जगह सकारात्मकता ही हो तो फिर ऐसी सकारात्मकता बोरिंग होगी, बेहोशी से भरी होगी। और एक ऐसा जीवन जिसमें आप दुख के समय अपने भीतर होश को लेकर आएं, सजगता को लेकर आएं, अपनी कमियों को ढूंढें, विश्लेषण करें और सार्थक परिवर्तन के द्वारा सफलता की ओर आगे बढ़े। क्या ऐसा जीवन वास्तव में आपको जीवन रूपांतरण की ओर नहीं ले जाएगा ?
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net