भयमुक्त चित ही परमात्मा को पा सकता है। परमात्मा यानी आनंद। यानी भय मुक्त चित् आनंद को पा सकता है। एक फकीर भय मुक्ति की इस अवस्था को पाने के लिए घने जंगल में गया। उसने जंगल में एक कुटिया बनाई। बीहड़ जंगल में डरावने डरावने जानवरों के बीच वह उस कुटीर में रहने लगा। जहां सिंह की दहाड़ भी थी, हाथियों का चिंघाड़ना भी था। मगर फकीर इस वातावरण में बड़े आराम से रहता था। धीरे-धीरे उसकी भय मुक्ति की अवस्था आसपास के गांव में फैलने लगी। लोग उसके दर्शन के लिए आते, उसके चरणों में सिर नवाते। उन्हीं लोगों के बीच एक युवक भिक्षु भी फकीर को मिलने आया। इस नए भिक्षु ने फकीर से कहा परमात्मा को पाने का क्या रास्ता है ? फकीर के पास तो एक ही जवाब था और वह जवाब था कि तुम भय मुक्ति को पा लो। और तुमने परमात्मा को पा लिया। यह दोनों लोग आपस में बात कर रहे थे कि एक सिंह जोर से दहाड़ा। युवक साधु तो बड़ा घबराया। उसने फकीर से कहा मुझे तो बड़ा डर लग रहा है। फकीर बोला अगर तुम डर रहे हो तो परमात्मा को नहीं पा सकोगे। युवक साधु बड़ा घबरा गया था वह तो भागने के लिए तैयार था। आत्मा परमात्मा की बात बाद में होती रहेगी उसने फकीर से कहा। तुम मेरे लिए थोड़ा जल लेकर आओ ताकि मैं स्वस्थ हो जाऊं। क्योंकि मैं तुरंत ही गांव वापस जाना चाहता हूं। फकीर अपनी कुटीर में गया। और जब वह पानी लेकर आने ही वाला था उस युवक साधु ने जिस शिला पर फकीर बैठता था वहां पर उसने कुछ धार्मिक ग्रंथों का मंत्र लिख दिया। जैसे ही फकीर आया और वह शिला पर पैर रखने ही वाला था कि उसने इस मंत्र को देखा और वह डर गया। युवक साधु ने कहा मैं तो जीवन में परमात्मा को पा भी लूं मगर तुम कभी भी परमात्मा को नहीं पा सकते। तुम सिंह की दहाड़ से तो भय मुक्त हो गए हो। मगर तुम्हें पवित्र मंत्रों ने अभी भी भय के कारण जकड़ रखा है। हम सब भी मानसिक यानी साइकोलॉजिकल भय से पीड़ित हैं। यह भय हैं मान्यता, विश्वास, सिद्धांत, तथाकथित ज्ञान से उत्पन्न हुए भय। आपने कितने लोगों को देखा होगा कि रास्ते में आते हुए मंदिर को देखकर वह रुककर प्रणाम करते हैं। भीतर भय है। कहीं आज मेरे साथ गलत न हो जाए। इस साइकोलॉजिकल भय के कारण व्यक्ति विक्षिप्त हो गया है, रुग्ण हो गया है। भय का अर्थ संवेदन शून्यता नहीं मगर गहरे भीतरी तलो पर जो हमने काल्पनिक भय का निर्माण कर रखा है उससे मुक्ति को पाना है। बस के आगे खड़े हो जाना सांप से न घबराना, आग के अंदर अपने हाथ को डाल देना बड़ा आसान है। कहना कि मुझे भय नहीं लगता। मगर मानसिक तलो के भय से भय मुक्त होना कठिनतम कार्य है। करीब-करीब असंभव। कमाल की बात यह है कि डरे हुए चित् की ऐसी अवस्था के लोगों को हम धार्मिक कहते हैं। वास्तविक में स्वस्थ धार्मिक व्यक्ति वह है जो सब प्रकार के साइकोलॉजिकल फियर से मुक्त हो जाए। ध्यान के महत्वपूर्ण 6 सूत्रों में जो कि शरीर विचार और भाव के साथ संबंधित हैं उनमें से शरीर शून्यता, विचार शून्यता को पाना तो फिर भी आसान है मगर भाव शून्यता को प्राप्त करना असंभव है। जो सिद्धांत जो मान्यताएं और जो तथाकथित ज्ञान आपने अपने मस्तिष्क में डाल रखा है यह सारे भय की नींव पर खड़े हैं। तो फिर क्या रास्ता है कि व्यक्ति फीयरलेसनेस को पा ले। एकमात्र रास्ता है और वह है अपने भीतर जाग जाना। अपने भीतर की समझ को बढ़ाना। जैसे ही व्यक्ति होश को अपने भीतर लेकर आता है तो पता चलता है कि मेरे सारे भय मात्र मेरी कल्पना की उपज है। आप अंधेरे से गुजर रहे हो और अंधेरे से लड़ने की बजाए आप दिया अगर जला लेते हो तो अंधेरे को न देख पाओगे। अंधेरे को भगाने की कोई आवश्यकता नहीं सिर्फ दिया जलाना ही काफी है। उसी तरह भय मुक्ति को पाना संभव है अगर हम अपने भीतर होश के दीए को जलाए।
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net