जो करें अपना पूरा उसमें दे दें। हम जो भी कर रहे हैं हम वही नहीं हैं। अगर आप क्रोध करते वक्त पूरा क्रोध बन जाए तो शायद दुबारा क्रोध न करें। शक्ति को संग्रह किए बिना कोई भी सफलता असंभव है ,चाहे वह भीतर ध्यान की यात्रा की कामना हो या धन प्राप्ति की। शक्ति का संग्रह करने के लिए हमें वर्तमान में जीने की कला सीखनी होगी। वर्तमान में उर्जा गोलाकार होती है। उर्जा व्यय नहीं होती। जो व्यक्ति भविष्य की कल्पनाओं में रहता है, उसकी उर्जा बाहर बाहर नदी के पानी के प्रवाह की तरह बहती रहती है। वर्तमान में व्यक्ति जब रहता है तब उसकी ऊर्जा संग्रहीत होने लगती है। शक्ति आपके भीतर गोलाकार होकर घूमने लगती है। जिस प्रकार सरोवर में जल स्वतः ही इकट्ठा हो जाता है। उसी प्रकार व्यक्ति के भीतर शक्ति इकट्ठा होती है।
यह आश्चर्य की बात है कि जब आप कोई क्रिया टोटालिटी में करते हैं तब आपकी शक्ति खोती नहीं। हम रात तक इस कारण थक जाते हैं कारण हम किसी भी काम को पूर्णतः से नहीं करते। उर्जा के व्यय को रोकने के लिए और उसके उर्दगमन के लिए जरूरी है कि व्यक्ति वर्तमान में जीने की कला को सीखे। जो व्यक्ति ऐसी अवस्था में जीता है वही संन्यासी है।
आप अगर कामवासना में भी पूर्णतया उतर जाते हैं 100% तब आप काम से भी ऊपर उठ सकते हैं। क्योंकि हम संभोग के क्षणों में भी विचारों में खोए रहते हैं इसलिए बार-बार क्रिया की ओर आकर्षित होते हैं। जब आप वर्तमान क्षण में जीने लगते हैं तब आपके लिए काम क्षीण हो जाएगा क्योंकि काम के लिए भविष्य में होना जरूरी है। हमने समय को तीन काल में विभाजित किया है भूत वर्तमान और भविष्य। मगर यह गलत धारणा है। वर्तमान का क्षण ही समय है। अतीत हमारी स्मृतियों से पैदा हुआ है और भविष्य हमारी कामनाओं से पैदा हुआ है। भूत और भविष्य से मुक्ति ही वर्तमान क्षण में जीना है – वही सन्यास है। जो व्यक्ति वर्तमान में जीना चाहता है उसे सृजनात्मक होना होगा। क्योंकि सृजनात्मकता आपकी शक्ति का उर्दगमन करेगी। किसी चीज का निर्माण करना और सर्जन करना दो अलग बातें हैं। मकान या भवन का निर्माण सर्जनात्मक कार्य नहीं परंतु एक बौद्धिक कृत्य हैं। सृजनात्मकता आपके भीतर की उर्जा के उर्दगमन से निर्मित होती है।
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net