ज्ञान का जन्म विचारों की शून्यता के बाद होता है। शून्यता के अनुभव में से जो आपके भीतर से प्रकट हो वही वास्तविक ‘ ज्ञान’ है। बाहर के ग्रंथों से सुना पढ़ा ज्ञान तो आपको ‘ज्ञानी’ होने का धोखा दे सकता है। विचार और दर्शन दो विरोधी घटनाएं हैं। विचार चेतना को ढके हुए हैं। जबकि जिसके पास भीतर की आंख है वह प्रकाश का दर्शन करते हैं। विचार नहीं करते। विचार अज्ञान का लक्षण है। विचार ज्ञान का लक्षण नहीं है यह जानकर आपको आश्चर्य होगा। एक अंधे आदमी को कमरे से बाहर जाना हो वह विचार करेगा कि दरवाजा कहां है? और जिसके पास आंख होगी वह उठ खड़ा हो दरवाजे से बाहर चला जाएगा। विचार कोई सत्य तक या धर्म तक लेकर जाने वाली बात नहीं है। विचार के माध्यम से कोई सत्य तक नहीं पहुंचा है। आप निर्विचार हो सके तो आपके भीतर ज्ञान का जन्म होगा। ज्ञान मनुष्य की चेतना का स्वरूप है। ज्ञान की ज्योति प्रत्येक के भीतर जल रही है। ज्ञान कोई ऐसी बात नहीं जो कोई उधार पा सकता है या खोजने पर मिल सकती हो। ज्ञान प्रत्येक का जीवन है मगर अभी वह बाहर के विचारों से ढका हुआ है। मनुष्य को ज्ञान उपलब्ध नहीं करना है। अपने ही भीतर आविष्कृत करना है जैसे कुएं के भीतर से पानी निकाला जाता है, कंकड़ पत्थर को हम अलग कर देते हैं और क्रमशः नीचे के जल स्रोत मुक्त हो जाते हैं वैसे ही। वास्तविक संन्यास धन संपदा या वस्तुओं का नहीं है। वास्तविक संन्यास विचारों का है। आप आसानी से किसी को अपना रुपया पैसा दे सकते हैं। और यदि कोई आपके विचारों को छीनना चाहे तो आप राजी न होंगे। एक पल के लिए सोचे कि अगर आपके सारे विचार ले लिए जाएं तो आपका क्या होगा ? सारे विचार छोड़ कोई अगर मौन हो जाए तो क्या होगा ? उस निर्विचार अवस्था में ही जो चेतना का अनुभव होता है उसे हमने आत्मा कहा है। निर्विचार अवस्था में जो प्रकाश का अनुभव होता है उसे ही हमने आत्मज्ञान कहा है इसी निर्विचार अवस्था का नाम ध्यान है। विवेक ही धर्म है । जाग जाना ही धर्म है। अगर कोई मनुष्य जाग जाए तो उससे पाप असंभव है। जिसका जागरण फलीभूत हो जाता है उसका हर कृत्य पुण्य है। आत्मज्ञान पाप की निर्जरा है। आत्मज्ञान अज्ञान की निर्जरा है। जैसे ही व्यक्ति आत्मज्ञान को उपलब्ध होता है,उससे मन की वृतियाँ अपने आप छूटने लगती है। भीड़ का हिस्सा बन आप स्वयं को नहीं जान सकते। स्वयं के भीतर का जागरण तो क्रांति है। भीड़ का हिस्सा बन आप धार्मिक तो जरूर हो सकते हैं परंतु उसका धर्म से कोई लेना देना नहीं। विज्ञान विचारों के जोड़ से बनता है। मगर धर्म विचारों की मुक्ति से संभव है। दोनों विरुद्ध दिशाएं हैं। एक संसार की ओर ले जाती है और एक स्वयं की ओर। जागरण वह अवस्था है जहां भीतर से तो आप खाली हो जाए और बाहर संसार चलता रहे। Sakshi Narendra @ mysticvision.net