मोक्ष की तरफ जाने के लिए ज्ञान साधन है। मगर ध्यान रहे ऐसा ज्ञान जो आपको सत्य की ओर ले जाए वही सही अर्थों में ज्ञान है।
ज्ञान दो प्रकार के होते हैं- एक वो जिसमें आपको कुछ सिद्धांत सिखाए जाते हैं। जो ज्ञान आपको सिद्धांत सिखाएं वह उधार का ज्ञान है, दो कौड़ी का है। ज्ञान वही जो आपको सत्य का अनुभव कराए। किताबों को पढ़ लेना, सूत्रों को कंठस्थ कर लेना ज्ञान नहीं है। ज्ञान तो है जो आपको भीतर की यात्रा पर ले जाए, ‘मैं कौन हूं’ की यात्रा की ओर ले जाए।
मोक्ष की तरफ ले जाने के लिए संसार या धन बाधा नहीं है। व्यक्ति का थोथा ज्ञान सबसे बड़ी बाधा है। यह समझ लेना कि सिद्धांतों को जानने से सत्य को प्राप्त कर लिया जा सकता है यह मिथ्या धारणा है। सत्य के लिए तो स्वयं को आहूत करना होता है। भारतवर्ष के ऋषि कहते हैं चित्त वृत्ति निरोध अर्थात चित् से मुक्ति सत्य का अनुभव है। स्वयं को शरीर और मन मान लेना बाधा है सत्य अनुभव में।
अपने भीतर होश को जगाने से आप शरीर और मन के ‘साक्षी’ हो जाते हो, ‘ज्ञाता’ हो जाते हो। जब आपको भूख लगे यह न कहें मुझे भूख लगी। कहें मुझे पता हुआ कि मेरे शरीर को भूख लगी। जब आपको क्रोध आए यह न कहें कि मैं क्रोधित हूं। वास्तव में आपके मन के भीतर क्रोध की त्वरा आई जिसका आपको पता चला। व्यावहारिक जीवन में छोटे-छोटे कामों को करते हुए जब आप साक्षी की साधना करने लगते हैं तब धीरे-धीरे आपका शरीर और मन से तादम्य टूटने लगता है। आपको अनुभव में आता है कि मैं कर्ता नहीं, न ही मैं भोगता हूं, मैं सिर्फ ‘साक्षी’ हूं। ‘सिर्फ देखो करो मत’ यह सूत्र है ‘साक्षी’ में स्थापित होने का। यह समझ कि जो कुछ भी हो रहा है अपने स्वभाव के अनुसार हो रहा है और मैं उसका देखने वाला हूं, जानने वाला हूं, साक्षी मात्र हूं। यह समझ को धीरे-धीरे गहरा करते जाना है। जिस प्रकार सिनेमा हॉल में आप फिल्म को सिर्फ देखते हो। यह जानते हुए कि फिल्म के पर्दे पर जो दिखाई पड़ रहा है वह लाइट और साउंड का मेल है। उसी भांति जीवन के हर परदृष्य में सिर्फ देखने वाले हो जाएं। और आप मुक्त हुए।
आपको किसी ने गाली दी और आपके मन में उसके प्रति क्रोध उत्पन्न हुआ। आप दूर खड़े हो मन की इस वृत्ति के साक्षी हो जाएं। आप पाएंगे कि आपका चित्त शांत हो गया । आपकी किसी ने तारीफ की, आप फूल कर कुप्पा हो गए। आप दूर खड़े हो मन की इस वृत्ति के भी साक्षी हो जाए देखें कि आपका मन कितना खुश हो रहा हैं जब आपकी तारीफ हो रही है।तब आप इस घटना में अलिप्त रह पाएंगे।
मान ले कि आपका मन अशांत है आप मन को शांत करने की कोशिश करेंगे तो वह और भी अशांत हो जाएगा। बेहतर यह है कि आप ‘कुछ न करने की अवस्था’ में हो जाए। न पक्ष में न उसके विरोध में खड़े हो। इस विराट जगत में तुम्हारी हैसियत सिर्फ ‘साक्षी’ मात्र की है। तुम कर्ता नहीं हो, तुम भोगता नहीं हो, तुम सिर्फ दृष्टा हो, देखने वाले हो। करने वाला तो वह परमात्मा है। ‘साक्षी’ है सवेरा। कर्ता और भोक्ता है अंधेरा। जिस क्षण आपने ‘साक्षी’ को पुकारा, जिस क्षण आप अपने भीतर होश को लेकर आए, जिस क्षण आपने जलाई भीतर की ज्योति उसी क्षण सवेरा।
रोज एक घंटा ध्यान और दिन भर की सारी क्रियाओं में अपने भीतर होश को जगाए रखना यह अनुभव में रहना कि मैं कर्ता नहीं, भोगता नहीं, सिर्फ देखने वाला हूं। ‘साक्षी’ मात्र हूं। यही है ‘साक्षी’ की साधना।
‘Sakshi’ Narendra@mysticvision.net