वह इंसान जो जितना छोड़ने को राज़ी है असल में वही इंसान कई गुना पाने का भी हकदार है। और कमाल की बात है कि जो ऐसे त्याग को तैयार है उसे सबकुछ स्वतः ही प्राप्त होने लगता है । बिन मांगे, बिन कहे जादुई तरीके से। बात दो दोस्तों की है। वह आपस में बात कर रहे थे। शाम हो चली थी। एक राहगीर उन मित्रों के पास से गुजरा। उसकी भी इन दो मित्रों के साथ दोस्ती हो गई। कुछ समय बाद सबको भूख लग आयी। पहले मित्र ने कहा मेरे पास तीन रोटी हैं। दूसरे मित्र ने कहा मेरे पास 8 रोटी हैं जो मुझे मेरी मां ने दी है। ऐसा करते हैं कि हम इन 8 रोटी को तीनों में बांट लेते हैं और भूख को मिटाते हैं। मगर 8 रोटी को 3 हिस्सों में कैसे बांटा जाए ? सारे बड़ी दुविधा में थे। पास ही में एक मंदिर था। उनमें से एक मित्र ने कहा कि मंदिर के पुजारी से पूछते हैं । तीनों पुजारी के पास चले गए। पुजारी ने सुझाव दिया की तुम एक रोटी के तीन टुकड़े करदो जिससे की 24 टुकड़े हो जाएंगे। और हर इंसान को 8 टुकड़े भोजन मिल जाएगा । समाधान मिलने से तीनों मित्र खुश हो गए । भोजन करने के बाद वो तीनो रातको सो गए। सुबह उठ राहगीर ने उन दोनों मित्रों को अलविदा कहने के पहले कहा कि मैं तुम्हें आठ सोने की मोहर उपहार के तौर पर देता हूं। अब फिर दोनों मित्र के बीच दुविधा खड़ी हो गई। कैसे आठ मोहर को आपस में बांटा जाए । दोनों मित्र बड़े इमानदार थे। पहला मित्र चार मुद्राएं नहीं लेना चाहता था क्योंकि उसने तीन ही रोटी का हिस्सा दिया था। उसकी इस जिद के कारण दोनों बड़े परेशान थे कि 8 मोहरों को कैसे बांटा जाए ? आखिर में उन्होंने सोचा हम रात को सो जाते हैं। और रात हमें जो ईश्वर आदेश देगा वैसा करेंगे। ईश्वर ने स्वप्न में कहा कि पहले मित्र को एक सोने की मुद्रा दी जाए। और दूसरे मित्र को बाकी की सात । दूसरा मित्र आश्चर्य में पड़ गया। उसने कहा कि जब मेरा हिस्सा पांच रोटी का था तो मुझे सात सोने की मुद्राएं क्यों मिल रही है ? जबकि पहले मित्र ने तीन रोटी का हिस्सा दिया था तो उसे सिर्फ एक मुद्रा क्यों मिल रही है ? ईश्वर ने कहा – इसलिए क्योंकि पहले मित्र ने तीन रोटी के 9 हिस्से किए तो वास्तव में उसने एक रोटी के टुकड़े का ही त्याग किया। जबकि दूसरे मित्र ने पांच रोटी के 15 हिस्से किए और उसमें उसने सात रोटी के टुकड़ों का त्याग किया। जबकि उसके हिस्से में 8 ही आई। क्योंकि दूसरे मित्र का त्याग पहले मित्र से कई ज्यादा है इसलिए सात मोहरे दूसरे मित्र को दी जाएं। और पहले मित्र को सिर्फ एक मोहर। जो त्याग के लिए तैयार हो जाता है उसे अनचाहे, अनजाने मार्गो से मिलना शुरू हो जाता है। संयस्थ वह है जो छोड़ने को राजी हो गया। और संसारी वह है, जो पकड़ने को बेचैन है। जो छोड़ने को राजी हो जाता है वह पाने के सारे दरवाजे भी खोल देता है।
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net