अपने चारों ओर नजर घुमाओ । लोग भागते हुए नजर आएंगे। जरा उन्हें रोककर कोई पूछे भाई क्यों भाग रहे हो ? उससे जवाब ना पा सकोगे ! व्यक्ति सुबह से शाम तक बेमतलब से भागा जा रहा है। कोई दो कमरे के मकान में रह रहा है , खुश है मगर भाग रहा है। क्योंकि उसे इससे बड़े मकान की तलाश है । उससे पूछे क्यों ? कोई जवाब नहीं। कोई भाग रहा है अच्छी नौकरी की तलाश में। अभी जो नौकरी है उससे आराम से घर चल रहा है। उससे पूछिए क्यों भाग रहा है ? कोई जवाब नहीं। व्यापारी से पूछे क्यों भाग रहे हो ? कहेगा और व्यापार बढ़ाने के लिए। मगर क्यों ? उसके पास कोई जवाब नहीं। मगर इन सब भागदौड़ के पीछे एक ही कारण हो सकता है वह है उसका मन। मन का काम है उलझाए रखना । मकड़ी जैसे अपने बनाए हुए जाल में खुद ही फंस जाती है वैसे ही व्यक्ति समस्याओं का निर्माण खुद करता है और फिर उससे मुक्त होना चाहता है। मन के पार भी एक ऐसी दुनिया है जिसका अनुभव होते ही तुम्हें स्वतः ही वह सब कुछ मिलने लगता है जिसको पाने के लिए आप भाग दौड़ करते हो। मगर उस अनुभव के लिए जरूरी है कि तुम थोड़ा ठहर जाओ। ठहरते ही आप उस अरूप को अनुभव करने लगते हो कि जहां से पूरे ब्रह्मांड का संचालन होता है। वृक्ष की जड़े दिखाई नहीं देती मगर टहनियां, पत्ते, फूल दिखाई पड़ते हैं। मगर उसे ही वृक्ष मान लेना नासमझी है। इसी गलती के कारण हम सुख दुख का निर्माण करते हैं। जड़ों को स्वयं के भीतर अनुभव करते ही हमारे अंदर समर्पण भाव जगता है। और इसी से न सिर्फ आनंद की अनुभूति होती है अपितु पदार्थ जगत की जो जो भी हमारी कामनाएं हैं उसे हम स्वतः ही प्राप्त कर लेते हैं। हकीकत यह है कि हम दुखों से वास्तव में मुक्त होना नहीं चाहते। अपने घावों को छुपाए रहते हैं उसका इलाज करवाना नहीं चाहते। और ऐसे ही जीवन बीत जाता है। कुछ पल ठहरने से आप अपने जीवन की दशा और दिशा को नया आयाम दे सकते हैं। और वह कुछ पल ठहरने का नाम है ध्यान।
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net