ज्ञानी कभी परमात्मा को नहीं जान सकता। सिर्फ प्रेमी ही परमात्मा को जान सकता है। ज्ञानी तो उलझा रहता है शास्त्रों को कंठस्थ करने में, तर्क, वितर्क में और अपनी बौद्धिकता में। प्रेम द्वार है परमात्मा का। ज्ञानी प्रेम से नहीं, शास्त्रों से परमात्मा को जानना चाहता है। परमात्मा को जानना है मन के पार जाने की अवस्था। और शास्त्र है मन की ही एक परत। प्रेमी को तो कभी परमात्मा मिल भी जाए ! मगर ज्ञानी को परमात्मा का अनुभव होना असंभव है। ज्ञानी के लिए ज्ञान बाधा हो जाता है शून्यता के अनुभव के लिए । प्रेम हैं स्वयं को बूंद मान सागर के साथ एक हो जाना। कर्म, ज्ञान,भक्ति तीन रास्ते हैं परमात्मा तक पहुंचने के। व्यक्ति शुरुआत करता है कर्म से। जब उसे एहसास होता है कि कर्म से न पा पाऊंगा तो ज्ञान का जन्म होता है। भीतर के कर्ता भाव के गिरते ही व्यक्ति के भीतर ज्ञान का दिया जलता है। समझ मिलती है कि मेरे करने से कुछ न होगा। तब वह शास्त्रों का सहारा लेता है सत्य के अनुभव के लिए। सब प्रकार के ज्ञान से जब व्यक्ति मुक्त हो जाता है एक तरह से कहें पूर्ण अज्ञानी हो जाता है तब भक्ति का जन्म होता है। पत्ता पेड़ को कैसे जान सकता है। वह तो स्वयं ही पेड़ का हिस्सा है। जानने के लिए तो दो चाहिए। ईश्वर के प्रति संपूर्ण अनुराग का नाम है भक्ति। ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण समर्पण का नाम है भक्ति। यह समझ कि मैं बांस की पोली पोंगरी हूं। जो सुर निकल रहा है, संगीत निकल रहा है वह उसका है। ऐसी ह्रदय की गहरी भावना ही भक्ति है। भक्ति है स्नेह, प्रेम और श्रद्धा की संतुलित स्थिति। जब आप अपने से छोटों से प्रीति करते हैं उसको स्नेह कहते हैं। हम उम्र के साथ की प्रीति को प्रेम और अपने से बड़े के लिए श्रद्धा।
भक्ति है सर्व के साथ प्रेम, समस्त के प्रति प्रीति। जब प्रेम पर कोई सीमा न रह जाए उस अवस्था को भक्ति कहेंगे। भक्ति परा अनुरक्ति है। मेटा फिजिकल। प्रीति की तीन अवस्थाएं स्नेह, प्रेम और श्रद्धा इस जगत की हैं। मगर भक्ति अस्तित्व के साथ एक होने का नाम है। परमात्मा की तलाश में एक युवक ने फकीर से पूछा – मैं परमात्मा को जानना चाहता हूं, सत्य का अनुभव करना चाहता हूं। फकीर का उत्तर था क्या तुम ने स्वयं को जाना ? स्वयं को जाने बिना आत्मा परमात्मा को जाना ही नहीं जा सकता। भक्ति जीवन का परम स्वीकार है। भक्ति जीवन में संगीत पैदा करने की विधि है। क्योंकि जीवन शाश्वत है, एक अविच्छिन्न धारा। इसलिए भक्ति जीवन है।
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net