क्या जीवन में आत्मज्ञान का होना अनिवार्य है ? क्या जीवन आध्यात्मिक होना चाहिए ? क्या अध्यात्म एक लग्जरी है। यह प्रश्न युवाओं के जहन में खासतौर पर पहेली है। माना जाता है की अध्यात्म की जरूरत तो जीवन के संन्यास की घोषणा है । जब आप अपनी परिवार बच्चों की जिम्मेदारियों से फारिक हो जाएं तब सही समय है कि आप अध्यात्म की ओर अपना रुख मोडे। जीवन के शुरुआती वर्षों में जब आप अपनी बुद्धि,कौशल्य, कैरियर पर फोकस कर रहे होते हैं और जवानी के रंगीन पलों में ध्यान, धर्म, अध्यात्म यह सारे शब्द ऊब पैदा करते हैं।
यह इसलिए होता है क्योंकि अध्यात्म के बारे में कई गलत मान्यताएं घर कर गई है। अध्यात्म 50 की उम्र के बाद जब आप घर गृहस्थी से निवृत्त हो जाएं उस समय के लिए हमने अलायदा रख छोड़ा है। जबकि इसकी आवश्यकता युवावस्था से ही सबसे ज्यादा है। बल्कि यू कहना अतिशयोक्ति न होगा कि पाठ्यक्रमों में बचपन से ही ध्यान को अगर हम जीवन का अभिन्न हिस्सा बना देते हैं तो आप बहुत ही जल्द मनचाही सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आत्मज्ञान का होना कदापि अनिवार्य नहीं है। हमारे जीवन में रोटी, कपड़ा, मकान और पैसों का होना अनिवार्य है मगर आत्मज्ञान का कदापि नहीं। आत्मज्ञान तो मेरी समझ से अत्यधिक aristocracy हैं। परमात्मा बिल्कुल गैर जरूरी है। आपके जीवन में आनंद है या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मगर आपके पास खाने के लिए रोटी, पहनने के लिए कपड़ा, और रहने के लिए मकान नहीं होगा तो यह कदापि किसी को भी स्वीकार्य नहीं है।
अध्यात्मिक होने का अर्थ है अपने आत्यंतिक निज स्वभाव को जानना। ताकि आप अपने भीतर की शक्तियों से रूबरू हो। और इन शक्तियों का इस्तेमाल जीवन में समृद्धि के लिए करें। इसलिए आत्मज्ञान का होना जीवन में अनिवार्य तो नहीं, आवश्यक भी नहीं, एक लग्जरी जरूर है। सिर्फ समृद्ध समाज ही सही मायनों में धार्मिक हो सकता है। अब अध्यात्म पूर्व से पश्चिम के देशों में इसलिए जाएगा क्योंकि पश्चिमी देश समृद्धि से भरे हैं। अध्यात्म की मदद से हम अपनी आत्मा से जुड़ जाते हैं। और मन और शरीर से किस प्रकार जुदा होना और ‘साक्षीभाव’ में स्थित कैसे हुआ जाए ताकि हमारे जीवन में शांति, खुशी और सुकून हो यह अनुभव से सीखते हैं।
अध्यात्म के बिना जीवन में अपूर्णता रह जाती है। आत्मज्ञान के बिना हम अपने जीवन से अनजान हो जाते हैं। अब यह सिद्ध हो चुका है कि ध्यान को जीवन का हिस्सा बना हम हमारे जीवन में सफलता के शिखरों को तनाव रहित हो हासिल कर सकते हैं।
अब आप यह सोच रहे होंगे कि आत्मज्ञान के लिए स्वयं को जानने के लिए यदि धन की जरूरत ही नहीं तो यह लग्जरी कैसे हो सकता है ? लेकिन अध्यात्म को समझना और आत्मज्ञान के पथ पर अग्रसर हो आगे बढ़ना यह कुछ चुनिंदा मुट्ठी पर लोगों का काम है। जो सबकुछ दाव पर लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं। जबतक आपके भीतर स्वयं को जाने की प्रबल प्यास नहीं होगी तबतक आप इस राह के लिए उत्सुक न होंगे। लेकिन आपको यह समझने की आत्यंतिक जरूरत है कि जीवन में आत्मज्ञान के बिना हम कोई भी खुशी या सफलता का आनंद नहीं ले सकते। तो इसलिए मैं कहता हूं आज की इस भाग दौड़ भरी, तनाव भरी जिंदगी में व्यक्ति को आध्यात्मिक होना आवश्यक है।
होती रही गुफ्तगू गैरों से मगर,
खुद से खुद की मुलाकात न हो पाई।
हजार बार हुई गुफ्तगू तुमसे मगर,
एक छोटी सी बात हमें समझ न आई।
ध्यान आपके भीतर होश को जगाएगा। और होशपूर्ण जीवन आपको अध्यात्म की पगडंडियों पर चलते चलते आनंद की अनुभूति कराएगा।
‘Sakshi’ Narendra@www.mysticvision.net