आत्म अनुभव के लिए एकमात्र अगर कोई बाधा है तो वह है अहंकार। अहंकार आदमी को पत्थर जैसा बना देता है। हम सत्य को तो श्रवण करते हैं मगर सत्य की परिभाषा जैसी है वैसी नहीं करते। हमारे सिद्धांत, हमारी सिखावन और हमारी मान्यताएं बीच में आड़े आती हैं। सत्य अनुभव की घटना तो क्षण भर में हो सकती है मगर देरी होती है हमारी पात्रता के कारण। हमारा अहंकार आड़े आता है सत्य को स्वीकार करने में। जीवन को जिसने अभिनय समझा वह जीवन को सच्चे अर्थों में जी गया। यह जीवन एक विशाल रंगमंच है और तुम उस पर अभिनय करने वाले अभिनेता। जो जीवन को अभिनय की तरह जी गया वह सफल हो गया। अभिनेता वही जो किरदार को वास्तविक अभिनय की तरह निभा सकें। ‘कुछ न होकर’ आप जीवन को जीते है तो वही जीवन है। जो खानाबदोश है वही संन्यासी है। जो ऐसा समझे यह जगत सराय से अधिक कुछ नहीं – कुछ दिनों का यहां बसेरा है वही संन्यासी है। यह सारा अस्तित्व एक ही ऊर्जा से बना है। जैसे सोने के तरह-तरह के आभूषण को अगर गला दिया जाए तो वह सोना बन जाता है। उसी तरह हम सब एक ऊर्जा के अंग हैं। आत्मअज्ञान के कारण संसार भासता है। जैसे ही साधक के भीतर प्रकाश होता है तब संसार मिट जाता है। अंधेरे में जैसे रस्सी सांप जैसी दिखती है मगर वास्तव में होती नहीं। ठीक उसी तरह प्रकाश के अभाव से यह संसार सत्य मालूम होता है।
जिसने स्वयं को जाना उसका संचार मिट जाता है। जिसने स्वयं को नहीं जाना उसका संसार कभी नहीं छूटता। यह सारा अस्तित्व आत्मा रूपी कण से बना है। संसार आत्मज्ञान का अभाव है। जागरण एकमात्र मंत्र है सत्य अनुभव के लिए। अपने भीतर होश को जगाना।
‘Sakshi’Narendra@mysticvision.net